लेखनी प्रतियोगिता -29-Jan-2023। दुश्मन बने दोस्त
दुश्मन बने दोस्त
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" मैं कहा़ हूँ ? मुझे क्या हुआ था?" रमाकान्त ने होश आने पर आश्चर्यचकित होते हुए डाक्टर से पूछा।
" तुम इस समय हास्पीटल में हो। तुम्हारा एक्सीडैन्ट होगया था। यह तो इन महाशय का धन्यवाद करो जो यह तुम्हें अस्पताल लेकर आगये। यदि कुछ और समय समय तक तुम वहाँ पडे़ रहते तो तुम्हारा बचना बहुत मुश्किल हो जाता। क्यौकि तुम्हारे सिर से बहुत खून बह रहा था। इन्होंने अपना खून भी दिया है।" डाक्टर ने रमाकान्त को बताया।
रमाकान्त ने जब सूरज को देखा तो वह बहुत शर्मिन्दिगी महसूस कर रहा था। क्यौकि सूरज उनका पडौ़सी था। और उन दोनों में छत्तीस का आंकडा़ था। उन दोनों का परिवार एक दूसरे का दुश्मन बना हुआ था। हमेशा एक दूसरा एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करता था।
रमाकान्त व सूरज दोनों पडौ़सी अवश्य थे। परन्तु उनके परिवार में पुरानी दूश्मनी थी। दोनों परिवार के सदस्य एक दूसरे की खुशी के मौके पर भी दूर रहते थे। सूरज ने इस दुश्मनी को समाप्त करने की बहुत कोशिश भी की थी परन्तु हमेशा कोई न कोई ऐसी स्थित आजाती कि पुनः पहले जैसा हाल हो जाता था।
रमाकान्त भी इस दुश्मनी को बढा़ता ही रहा था। उसने कभी भी समझौता करने का समर्थन नही किया था। वह हमेशा किसी ऐसे बहाने की प्रतीक्षा में रहता जिससे दुश्मनी बढ़ती रहे। वह हमेशा ऐसे मोकौ का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश में रहता था।
एकबार तो बच्चौ के आपस के झगडे़ को इतना बढा़दिया था कि दोनों परवार एक दूसरे के साथ मारपीट करने को तैयार होगये थे और उसके बाद मामला पुलिस तक पहुँच गया था।
इस पर भी सूरज ने हाथ जोड।कर माफी माँगकर इसको समाप्त किया था। तबसे रमाकान्त सूरज को बुदजिल और कायर कहने लगे थे।लेकिन सूरज ने इसको भी बुरा नही मांना था।
लेकिन आज रमाकान्त को समझ में आगया था कि वह कितना गलत है। उसने आज अपनी सभी गल्तिया अपने मन में स्वीकाऋ करली और सूरज को गले लगाकर उससे मांफी मांगने को दिल कर रहा था।
रमाकान्त ने जब उठने की कोशिश की तब सूरज ने उसको रोकते हुए कहा," भाई तुम लेटे रहो अभी तुम्हारी तबियत ठीक नही है अभी तुम्हें आराम करने की जरूरत है। हाँ मुझे भाभी का नम्बर देदो जिससे में उनको सूचना देदूँ क्यौकि मेरे पास उनका कोई नम्बर नही है।"
रमाकान्त सूरज को दोनों हाथ जोड़कर रोने लगा और बोला ," मुझे माँफ करना मै तुम्है हमेशा अपना दुश्मन मानता रहा लेकिन आज तुमने आज एक अच्छे दोस्त व पडौ़सी का फर्ज निभाकर मुझे कर्जदार बना दिया है। मैं तुम्हारा यह कर्ज कभी भी नही पूरा कर सकूँगा। "
"नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैने तो तुम्हें कभी अपना दुश्मन समझा ही नहीं था। और मैने तो मानवता का धर्म पूरा किया है।" . सूरज बोला।
इस तरह सूरज के इस ब्यबहार से दो परिवार की पीडी़ दर पीडी़ चली आरही दुश्मनी समाप्त होगयी और अब दोनों परिवार सब कुछ भूलकर एक अच्छे पडौ़सी बन गये। इस तरह दुश्मनी दोस्ती में बदल गयी। रमाकान्त ने दुश्मनी को भूलकर सूरज से दोस्ती करली।
इसी लिए कहावत भी है कि आपत्ति के समय सबसे पहले पडौ़सी ही काम आता है अपने रिश्तेदार तो बाद में पहुँचते है।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
Varsha_Upadhyay
01-Feb-2023 06:55 PM
Nice 👍🏼
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Vedshree
30-Jan-2023 01:52 PM
Bahot accha likha h apne 👌
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Punam verma
30-Jan-2023 09:05 AM
Very nice
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